140. एक छलिया आस के पीछे, दौड़े तो यहाँ तक आए!

चलो एक ख्वाब बुनते हैं,

नई एक राह चुनते हैं।

अंधेरा है सफर तो क्या,

कठिन है रहगुज़र तो क्या,

हमारा फैसला तो है,

दिलों में हौसला तो है।

बहुत से ख्वाब हैं,

जिनको हक़ीकत में बदलना है,

अभी एक साथ में है

कल इसे साकार करना है,

निरंतर यह सफर

ख्वाबों का, इनके साथ पलना है,

नहीं हों ख्वाब यदि तो

ज़िंदगी में क्या बदलना है!

ये बिखरे से कुछ अल्फाज़,

इनमें क्या है कुछ मानी?

हमारे ख्वाब हैं जीने का मकसद

ये समझ लो बस।

ये थे कुछ अपने शब्द, और अंत में- सपनों सौदागर स्व. राज कपूर की तरफ से, शैलेंद्र जी के शब्दों में-

इक छलिया आस के पीछे, दौड़े तो यहाँ तक आए,

हर शाम को ढलता सूरज, जाते-जाते कह जाए,

वो तय कर लेगा मंज़िल, जो इक सपना अपनाए।

सपनों का सौदागर आया, ले लो ये सपने ले लो,

तुमसे क़िस्मत खेल चुकी

अब तुम क़िस्मत से खेलो।

नमस्कार।

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11 responses to “140. एक छलिया आस के पीछे, दौड़े तो यहाँ तक आए!”

  1. वाह! शरमा जी! कया बात है! जवाब नही;

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    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      धन्यवाद अनामिका जी।

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    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      Thanks Aman Ji.

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  2. Well written sir ji

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    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      Thanks dear

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  3. Bhote badheya bhai ek bar hmara blog ki pdho or btao plzz kesa lga

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    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      धन्यवाद पंकज जी। मैंने आपका ब्लॉग पढ़ा, अच्छा लिखते हैं।

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  4. Wawh….shundar rachna.

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    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      बहुत बहुत धन्यवाद।

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