रतनारे नयनों में एक सपन डूब गया- किशन सरोज

प्रसिद्ध गीत कवि स्व. श्री किशन सरोज जी का स्मरण करते हुए उनके कुछ गीत शेयर कर रहा था, वैसे तो किशन जी ने इतने सुंदर गीत लिखे हैं कि लगता है कि उनको शेयर करता हि जाऊं। लेकिन फिलहाल इस क्रम में मैं इस गीत के साथ यह क्रम समाप्त करूंगा।

मुझे याद है कि किशन सरोज जी जब भी मिलते थे एक दोस्त की तरह मिलते थे, इतने सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे प्रेम के और विरह के गीतों के सुकुमार बादशाह थे, आज का उनका गीत, जिसे आजकल ‘ब्रेक-अप’ कहा जाता है उसके संबंध में है। लेकिन उस समय यह ‘ब्रेक-अप’ कोई फैशन का हिस्सा नहीं था और इसका कारण समाज के बंधन होते थे। यह उनका एक अलौकिक गीत है, लीजिए आज प्रस्तुत है, फिलहाल इस कड़ी का अंतिम गीत-

 

छोटी से बड़ी हुईं तरुओं की छायाएं
धुंधलाईं सूरज के माथे की रेखाएं
मत बांधो‚ आंचल मे फूल चलो लौट चलें
वह देखो! कोहरे में चंदन वन डूब गया।

 

माना सहमी गलियों में न रहा जाएगा
सांसों का भारीपन भी न सहा जाएगा
किन्तु विवशता यह यदि अपनों की बात चली
कांपेंगे आधर और कुछ न कहा जाएगा।
वह देखो! मंदिर वाले वट के पेड़ तले
जाने किन हाथों से दो मंगल दीप जले
और हमारे आगे अंधियारे सागर में
अपने ही मन जैसा नील गगन डूब गया।

 

कौन कर सका बंदी रोशनी निगाहों में
कौन रोक पाया है गंध बीच राहों में
हर जाती संध्या की अपनी मजबूरी है
कौन बांध पाया है इंद्रधनुष बाहों में।
सोने से दिन चांदी जैसी हर रात गयी
काहे का रोना जो बीती सो बात गयी
मत लाओ नैनों में नीर कौन समझेगा
एक बूंद पानी में‚ एक वचन डूब गया।

 

भावुकता के कैसे केश संवारे जाएं?
कैसे इन घड़ियों के चित्र उतारे जाएं?
लगता है मन की आकुलता का अर्थ यही
आगत के आगे हम हाथ पसारे जाएं।
दाह छुपाने को अब हर पल गाना होगा
हंसने वालों में रह कर मुसकाना होगा
घूंघट की ओट किसे होगा संदेह कभी
रतनारे नयनों में एक सपन डूब गया।

 

-किशन सरोज

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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2 responses to “रतनारे नयनों में एक सपन डूब गया- किशन सरोज”

  1. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. Yes he was a really great poet.

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