61. अरुण यह मधुमय देश हमारा !

आज फिर से पुराने ब्लॉग का दिन है, लीजिए प्रस्तुत है, पिछले वर्ष स्वाधीनता दिवस पर लिखा गया एक और पुराना ब्लॉग-

आज याद आ रहा है, शायद 27 वर्ष तक, मैं स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर संदेश तैयार किया करता था, ये संदेश होते थे पहले 5 वर्ष (1983 से 1987) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड की इकाइयों (मुसाबनी और खेतड़ी) और बाद में 22 वर्ष तक एनटीपीसी की कुछ इकाइयों के कर्मचारियों के लिए, और यह संदेश पढ़ते थे वहाँ के परियोजना प्रधान, महप्रबंधक आदि। यह सिलसिला 2010 में बंद हो गया, क्योंकि 1 मई 2010 से मैं सेवानिवृत्त हो गया था। वरना जैसे 3 ईडियट्स में भाषण लिखने वाले पंडित जी बोलते थे कि आप सुनिए उसको और देखिए मुझको, क्योंकि ये भाषण मैंने ही लिखा है, की हालत थी। खैर वैसा परिणाम कभी मुझे नहीं भुगतना पड़ा।

सेवानिवृत्ति के 7 वर्ष बाद, आज मन हो रहा है कि अपनी ओर से, अपने स्वाभिमान और राष्ट्राभिमान के लाल किले की प्राचीर पर खड़े होकर आज राष्ट्र के नाम संदेश जारी करूं। ये अलग बात है कि उस समय हजारों की कैप्टिव ऑडिएंस होती थी, कुछ शुद्ध राष्ट्रप्रेम की भावना से समारोह में आते थे, बहुत से ऐसे भी थे जिन्हें इस अवसर पर पुरस्कार आदि मिलते थे और बहुत सारे अभिभावक, स्कूल स्टाफ के सदस्य आदि इसलिए भी आते थे कि वहाँ स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, उन बच्चों को प्रोत्साहित करना होता था, उनके फोटो खींचने होते थे और फिर उनको अपने साथ घर लेकर जाना होता था।

परियोजनाओं में होने वाले उस भाषण में, उस अवधि की उपलब्धियों का उल्लेख होता था, और एनटीपीसी में एक शब्द समूह जो बार-बार आता था, वह था ‘प्लांट लोड फैक्टर’ (संयंत्र सूचकांक), जिसका आशय होता था कि हम कितनी अधिक क्षमता के साथ विद्युत उत्पादन कर रहे हैं।

आज वह सीमित परिवेश नहीं है मेरा, और मैं उस सेवा-क्षेत्र से दूर, राजधानी क्षेत्र से दूर, जहाँ मैं सेवा में न होने की अवधि में अधिकतर रहा, आज देश के सुदूर छोर पर, गोआ में हूँ। यहाँ की समस्याओं के बारे में भी अभी ज्यादा नहीं जानता, पास के शहर पणजी को भी अभी, ठीक से क्या बिल्कुल नहीं खंगाला है, एक-दो ‘बीच’ देखी हैं, वैसे यहाँ इतनी ‘बीच’ हैं कि इंसान उनके बीच ही घूमता रह जाए।

संदेश क्या, मेरे जैसा साधारण नागरिक देशवासियों को शुभकामना ही दे सकता है। हम सभी मिल-जुलकर प्रगति करें। देश में विकास के नए अवसर पैदा हों। हमारी प्रतिभाओं को देश में ही महान उपलब्धियां प्राप्त करने और देश की सर्वांगीण प्रगति में अंशदान करने का अवसर मिले। जो नफरत फैलाने वाले लोग और संगठन हैं, उनकी समाप्ति हो और सभी भारतीय प्रेम से रहें।

आज परिस्थितियां बड़ी विकट हैं, हमारे दो पड़ौसी हमेशा ऐसा वातावरण बनाए रहते हैं, कि जैसे अघोषित युद्ध चल रहा हो और वास्तविक युद्ध की आशंका भी बनी रहती है। हम यह आशा ही कर सकते हैं कि ऐसी स्थितियां न बनें, लेकिन यह पूरी तरह हमारे हाथ में नहीं है। यदि अनिच्छित स्थिति आती हैं तो हमारी सेनाएं अपने पराक्रम से उनका मुकाबला करें और पूरा देश उनके साथ हो, वैसे युद्ध न हो, यही सबके लिए श्रेयस्कर है, हमारे लिए भी और अन्य देशों के लिए भी।
श्री जयशंकर प्रसाद जी की पंक्तियां हैं-

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥

आज अपनी एक कविता भी शेयर कर रहा हूँ, जैसी मुझे याद है अभी तक, क्योंकि गीत तो याद रह जाते हैं, स्वच्छंद कविता को याद रखने में दिक्कत होती है-

काबुलीवाला, खूंखार पठान-
जेब में बच्ची के हाथ का जो छापा लिए घूमता है,
उसमें पैबस्त है उसके वतन की याद।
वतन जो कहीं हवाओं की महक,
और कहीं आकाश में उड़ते पंछियों के
सतरंगे हुज़ूम के बहाने याद आता है,
आस्थाओं के न मरने का दस्तावेज है।
इसकी मिसाल है कि हम-
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई होने के नाते नहीं
नागरिक होने के नाते बंधु हैं,
सहृदय होने के नाते सखा हैं,
वतन हमसे आश्वासन चाहता है-
कि अब किसी ‘होरी’ के घर और खेत-
महाजनी खाते की हेरे-फेर के शिकार नहीं होंगे,
कि ‘गोबर’ शहर का होकर भी-
दिल में बसाए रखेगा अपना गांव
और घर से दूर होकर भी
हर इंसान को भरोसा होगा-
कि उसके परिजन सदा सुरक्षित हैं।

नमस्कार।