63. आस्था के नगीने फक़त कांच हैं!

आज फिर से पुराने ब्लॉग का दिन है, लीजिए प्रस्तुत है, एक और पुराना ब्लॉग-

आज सोशल मीडिया के बारे में बात कर लेता हूँ, ये ब्लॉग लिखने का मेरा उद्देश्य यही है कि मैं विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को संकलित कर लूं और उसके बाद यदि कभी ऐसा मन बने तो इनमें से कुछ ब्लॉग्स को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा सकता है। इनमें यदा-कदा अपनी कविताएं भी डाल दी हैं, जिन्हें मैंने कभी संभालकर नहीं रखा, इस बहाने वे भी आगे उपयोग हेतु उपलब्ध हो जाएंगी।

फिलहाल मैं इन ब्लॉग्स को फेसबुक और ट्विटर पर डाल रहा हूँ, संकलन की दृष्टि से, और कुछ अधिक उम्मीद इन माध्यमों से नहीं है, क्योंकि अगर एक फोटो वहाँ डाल दें अथवा चार पंक्तियों की टिप्पणी कर दें तो उसको लाइक करने वाले अथवा उस पर कमेंट करने वाले अधिक हो जाते हैं, किसी ब्लॉग के मुकाबले। इन प्लेटफॉर्म्स से इतर ब्लॉग्स को फॉलो करने वाले ज्यादा हो जाते हैं।

कुल मिलाकर सोशल मीडिया के ये प्लेटफॉर्म आधुनिक मुहल्ले बन गए हैं। यहाँ निष्पक्ष विचार के लिए अधिक स्थान नहीं है, यहाँ आप अपने जीवन की गतिविधियां मित्रों के साथ शेयर करें, वह तो उद्देश्य है ही, और उसका उपयोग भी काफी होता है, इसके अलावा आप किसी राजनैतिक पार्टी के घोर समर्थक अथवा घोर शत्रु हो सकते हैं और विरोधी पक्ष को जमकर अनसेंसर्ड गालियां दे सकते हैं, बल्कि कभी-कभी तो कंपिटीशन भी चलता है इस बात का कि इन पवित्र गालियों से संबंधित आपका ज्ञान कितना गहन है और कितना गाली साहित्य आपको कंठस्थ है।

कुछ लोग यहाँ परोपकार की पवित्र भावना से काम करते हैं, और वे आपको इस बात का अवसर भी प्रदान करते हैं कि आप किसी एक चित्र को लाइक करके, उस पर कोई धार्मिक शब्द अथवा जय हिंद लिखकर, अपने जीवन को धन्य कर लें। बताइये अगर ये परोपकारी जीव न होते, तो आपका जीवन धन्य कैसे हो पाता!  इतना हीं नहीं, यहाँ आपको तुरंत प्रमाण पत्र भी मिल जाता है, अगर आपने तुरंत ‘लाइक’ किया अथवा वांछित शब्द लिखे तो आप धार्मिक, अथवा देशभक्त, जिस क्षेत्र का भी वे सर्टिफिकेशन कर रहे हैं, और अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आप घोर अधार्मिक और देशद्रोही,पाकिस्तानी आदि-आदि हो सकते हैं। अब आप समझ सकते हैं, कि आपकी खैर किसमें है।

अब ऐसा करने वालों में से कुछ लोग तो ऐसे घिसे हुए हो सकते हैं कि उन पर कुछ कहने का असर नहीं होगा। मैं उन भोले-भाले लोगों से कहना चाहूंगा,जो इस तरह की बातों के प्रभाव में आ जाते हैं कि अभी आपने ‘लाइक’ किया, अथवा ‘जय हो’ लिखा अथवा इसको शेयर किया तो दो-तीन दिन के अंदर आपको शुभ समाचार मिलेगा। मैं निवेदन करना चाहूंगा कि इस तरह के भुलावे में न आएं। आस्था हर किसी का वैयक्तिक विषय है, आप घर में पूजा करें, मंदिर में जाएं, किसी मंदिर अथवा आश्रम में ही बस जाएं। सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स पर इस तरह की गतिविधियों में आतंकित होकर भाग न लें,कि अगर मैंने ऐसा न किया तो कुछ बुरा हो जाएगा। न लालच में आएं और न लालच दिलाएं।

हमारे शहीदों के प्रति हम सबके मन में आदर है, लेकिन किसी शहीद की फोटो लगाकर जब कोई ऐसी घोषणा करता कि जिसने देखते ही ऐसा न किया तो वह ‘ऐसा’ होगा। असल में वे उस समय एक शहीद के चित्र का दुरुपयोग करके अपने मन की कुत्सित भावना का प्रदर्शन करते हैं। सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर कोई किसी से धर्म अथवा देशभक्ति की शिक्षा लेने के लिए नहीं आता।

सोशल मीडिया के बारे में, आज यही टिप्पणी करनी थी, बाद में फिर किसी पक्ष पर बात करेंगे।
आज अपना एक गीत, आज की ज़िंदगी के संबंध में-

ज़िंदगी आज की एक अंधा कुआं
जिसमें छाया नहीं, जिसमें पानी नहीं
प्यास के इस सफर के मुसाफिर हैं सब,
कोई राजा नहीं, कोई रानी नहीं।

अब न रिश्तों मे पहली सी वो आंच है,
आस्था के नगीने फक़त कांच हैं,
अब लखन भी नहीं राम के साथ हैं,
श्याम की कोई मीरा दिवानी नहीं।

हमने बरसों तलाशा घनी छांव को,
हम बहुत दूर तक यूं ही भटका किए,
अब कोई आस की डोर बाकी नहीं
अब किसी की कोई मेहरबानी नहीं।

कृष्ण गुलशन में क्या सोचकर आए थे,
न हवा में गमक, न फिजां में महक,
हर तरफ नागफनियों का मेला यहाँ,
कोई सूरजमुखी, रातरानी नहीं।
                                                   (श्रीकृष्ण शर्मा)

नमस्कार।


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