79. मत्स्य कन्या!

आज फिर से प्रस्तुत है, एक और पुरानी ब्लॉग पोस्ट। मैंने शायद दो ही ऐसी पोस्ट लिखी थीं जो रहस्य से भरी थीं। उनको ही क्रम से प्रस्तुत कर रहा हूँ, आज उनमें से दूसरी पोस्ट पेश है-

अपने मित्र के दादाजी का सुनाया हुआ एक और किस्सा आपसे शेयर कर रहा हूँ, जैसा मैंने वादा किया था। इस किस्से में भी एक ऐसे जीव का उल्लेख है, जिसके बारे में हम सुनते तो हैं लेकिन हमने उसको देखा नहीं होता। यह घटना भी लगभग 100 वर्ष पुरानी है- मैं इसको घटना ही कहूँगा, आप चाहें तो कहानी मान सकते हैं। घटना का स्थान वही मुल्तान, जहाँ मेरे मित्र के दादाजी उस समय रहते थे।

हाँ तो मेरे मित्र के दादाजी को ये घटना उनके एक सरदार मित्र ने सुनाई थी। उस समय मेरे मित्र के दादाजी जवान थे और उनके ये सरदार मित्र भी जवान थे। इसके अलावा जैसा मैंने अपने मित्र से जाना, ये सरदार जी बहुत आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। कुल मिलाकर घटना छोटी सी है, मैं बिना बात इसमें मसाला डाल रहा हूँ।

ये सरदार जी एक ‘शिप’ या कहें कि बड़ी नाव पर यात्रा कर रहे थे, डेक पर खड़े हुए समुद्र का, नज़ारा देख रहे थे। इतने में इनकी निगाह एक मत्स्य कन्या पर पड़ी, वह लगातार इनके शिप के पीछे तैरकर आ रही थी और सरदार जी की तरफ देखे जा रही थी। वह बीच-बीच में कुछ आवाज़ भी निकालती जा रही थी। जैसा मैंने कहा सरदार जी बहुत सुंदर थे और मत्स्य कन्या तो जैसा उसके बारे में सुना जाता है, वैसी ही थी। वह मत्स्य कन्या, सरदार जी की तरफ देखते हुए लगातार शिप के पीछे तेजी से तैरती आ रही थी, सरदार जी भी उसकी तरफ बहुत आकर्षित हो रहे थे, उन्होंने देखा कि शिप की गति के साथ मिलान करने में मत्स्य कन्या बहुत थक रही थी, वह तेज आवाज़ें भी निकाल रही थी, आखिर में जब सरदार जी ने देखा कि समुद्र का किनारा इतनी दूर है कि तैरकर पहुंचा जा सकता है, तब उन्होंने शायद अपने साथियों को अपने सामान का खयाल रखने को कहा और समुद्र में छलांग लगा दी।

सरदार जी और मत्स्य कन्या तैरकर पास के किनारे पर पहुंच गए, जो एक निर्जन स्थान था, बहुत समय तक वे आपस में प्यार करते रहे, शायद अगला दिन हो गया, सरदार जी को भूख लगी और उन्होंने एक मछली पकड़ी और वे उसको भूनकर खाने लगे, यह देखकर मत्स्य कन्या ने नफरत भरी मुद्रा में आवाज निकाली और वहाँ से दूर चली गई। इसके बाद सरदार जी किसी तरह अपने स्थान पर पहुंचे।

ये है किस्सा नंबर-2, विश्वास करना न करना आपकी श्रद्धा पर निर्भर है, मैं तो अपने मित्र की बात, जो उन्होंने अपने दादाजी के हवाले से बताई, उस पर पूरी तरह विश्वास करता हूँ।

नमस्कार।


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