97. विकास प्राधिकरण!

आज फिर से प्रस्तुत है, एक और पुरानी ब्लॉग पोस्ट-

आज लखनऊ का एक सरकारी विभाग याद आ गया, जिससे काफी वर्षों पहले वास्ता पड़ा था, 2002 के आसपास, और इस विभाग की याद ऐसी तेजी से आई कि मैं जो काम कर रहा था, उसको बीच में छोड़कर ही इस अनुभव को शेयर कर रहा हूँ।

हाँ तो जैसा मैं बता चुका हूँ, लखनऊ छोड़े मुझको काफी साल हो गए, और अभी मैं गोआ में हूँ, शायद इसीलिए यह लिखने का साहस कर पा रहा हूँ, वरना लालची सरकारी गुंडों से निपटने का साहस मुझमें नहीं है।

कुल मिलाकर बात इतनी है कि वर्ष 2001 में, मैं स्थानांतरित होकर लखनऊ आया और फिर ये विचार आया कि अपना मकान हो तो अच्छा है, जिसमें अपना घर वास कर सके। शायद 2002 के आसपास हमने गोमती नगर के विकास खंड में एक छोटा और सुंदर घर खरीद लिया, कंपनी से ऋण लेकर, अपनी हैसियत के अनुसार।

1250 वर्गफुट (110 वर्गमीटर) का यह मकान था, एक सज्जन जो पुलिस विभाग में, शायद सिविल इंजीनियर थे, वे छोटे-छोटे मकान बनवाकर बेचते थे, उनमें से ही यह एक मकान हमें पसंद आ गया था। अब एक मध्यम वर्गीय परिवार का एक व्यक्ति जब छोटी-मोटी संपत्ति हासिल कर लेता है तो वह उसको सीने से लगाकर रखना चाहता है, सोचता है इसमें कहीं कोई कमी न रह जाए, जिसके कारण कल कोई परेशानी हो। इसी प्रसंग में मैंने मकान के नक्शे को देखा जिसमें एल.डी.ए. की ओर से निर्माण की अनुमति प्रदान करते हुए लिखा गया था कि बाद में ‘कम्प्लीशन सर्टिफिकेट’ प्राप्त किया जाए।

मैंने सोचा कि यह औपचारिकता भी पूरी कर ली जाए, जिससे बाद में कोई परेशानी न हो। मैंने इस विचार से एक आवेदन लिखा और इस महान विभाग में गया, जिसे ‘लखनऊ विकास प्राधिकरण’ कहा जाता और बाद में मुझे मालूम हुआ कि इस विभाग को उत्तर प्रदेश सरकार का भ्रष्टतम विभाग होने की ख्याति प्राप्त है। आज उसकी स्थिति क्या है, मैं नहीं जानता, मेरे विचार में यह महान विभाग आज भी उसी स्थिति में होगा।

खैर मुझे अपनी छोटी सी संपत्ति से यह टिप्पणी हटवानी थी, ‘कम्प्लीशन सर्टिफिकेट’ संबंधी, जिससे भविष्य में कोई परेशानी न हो, अतः मैं इस संबंध में अपना आवेदन लेकर इस महान विभाग में पहुंच गया, वहाँ मुझे एक इंजीनियर महोदय के पास भेजा गया।

उन सज्जन ने जो कहा, वह आज भी मुझे अच्छी तरह याद है। वे बोले-

‘आपने दो गलतियां कर दीं, एक तो ये कि आपने लखनऊ में मकान खरीद लिया और दूसरी यह कि आपने हमारे पास ‘कम्प्लीशन सर्टिफिकेट’ के लिए आवेदन कर दिया। अब तो यही होगा कि हम आएंगे और कहेंगे कि यह तोड़ दो, आप उसको तोड़ दोगे फिर हम आएंगे और कहेंगे कि ये भी तोड़ दो और इस तरह आखिर में कुछ भी नहीं बचेगा!’

मैं पूरे डर के साथ उनकी महानता से अभिभूत हो गया, बाद में मैंने ‘प्राधिकरण’ की नियम पुस्तिका को पढ़ा, जिसमें लिखा था कि इस आकार के और इससे काफी बड़े आकार तक, शायद 400 वर्गमीटर तक के मकानों के लिए ‘कम्प्लीशन सर्टिफिकेट’ की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद मैंने उस महान हस्ती के दर्शन नहीं किए, हाँ एकाध बार जब घर के अंदर कुछ छोटा-मोटा निर्माण हो रहा था, तब उनमें से एक-दो सज्जन गली में मंडराने लगे और हिजड़ों की तरह अपना नज़राना लेकर ही गए।

आज जबकि मैं दूर हूँ उनकी रेंज से, निरापद हूँ, तब अचानक इस महान विभाग को श्रद्धांजलि देने का मन हुआ, सो दे दी!

नमस्कार।


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