253. शिक्षा में अशिक्षा!

शिक्षा के बारे में बात करते हुए बड़े संकोच का अनुभव होता है। वैसे मेरे खयाल में देश में कुछ ऐसे शिक्षा मंत्री भी हुए हैं जो शायद बहुत अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे, और यह भी संभव है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने की दृष्टि से उनका योगदान अधिक हो। तो हम भी शिक्षा के बारे में बात कर सकते हैं जी!

मैंने लंबे समय तक कार्पोरेट क्षेत्र में काम किया है, मैं मानव संसाधन विभाग में था। वह विभाग जिसका काम सभी कर्मचारियों के कल्याण और उनके कैरियर के विकास को देखना होता है। मेरे पास विशेष डिग्री मानव संसाधन से संबंधित नहीं थी, लेकिन मेरे अधीन बहुत से अधिकारियों, ट्रेनीज़ ने काम किया। मैंने पाया कि आवश्यक नहीं है कि जिनके पास बड़ी डिग्री है उनका निष्पादन, उनका ज्ञान अधिक होगा! बल्कि अक्सर मैंने इसका उल्टा ही पाया, क्योंकि जिनके पास डिग्री थी, उनके भीतर इस बात का अहंकार आ जाता था और डिग्रीरहित लोग अधिक सजग होते थे, क्योंकि उनके मन में यह भाव होता था कि उनको अपने निष्पादन से ही अपनी कुशलता साबित करनी है।

शिक्षा से कितना और कैसा प्रभाव पड़ता है किसी व्यक्ति पर, यही वास्तव में उस शिक्षा की परीक्षा है। कोई जब किसी नौकरी के लिए जाता है, तब उसके शिक्षा और अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र देखे जाते हैं। अनुभव तो खैर अपनी जगह ठीक है, लेकिन शिक्षा! कुछ परीक्षाओं के परिणाम के आधार पर प्राप्त वे प्रमाण पत्र होते हैं।

परीक्षाएं जिन्हें लोग रटकर अथवा कुछ मामलों में नकल करके, गेस-पेपर्स के आधार पर तैयारी करके भी पास करते हैं। वैसे जो कुछ पाठ्य-पुस्तकों में है, उसको पूरी निष्ठा से पढ़कर, तैयारी करके भी क्या बदलाव आता है इंसान में, कि हम उसको पढ़ा-लिखा कह सकें!

हमारी शिक्षा-व्यवस्था लोगों को साक्षर तो बनाती है, लेकिन क्या वह वास्तव में शिक्षित भी बनाती है! मेरे विचार में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को संस्कार-संपन्न बनाना होना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति के हर व्यवहार से यह लगना चाहिए कि वह संस्कार-संपन्न है।

बेशक शिक्षा का एक उद्देश्य तो व्यक्ति को रोज़गार के योग्य बनाना भी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके हाथ में एक कागज़ हो, जिसे देखकर लोग उसे नौकरी दे दें! पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी ने कुछ ऐसी बात कही थी कि शिक्षित व्यक्ति पकौड़े बेचकर भी पैसा कमा सकता है। निश्चित रूप से विरोधी लोगों को तो इस बयान की आलोचना करनी ही थी। लेकिन प्रधान मंत्री जी ने जिस बात की ओर संकेत किया था, वह ये था कि शिक्षित व्यक्ति में यह क्षमता विकसित होनी चाहिए कि वह जहाँ है, वहाँ रोज़गार का साधन विकसित कर सके, उद्यमिता विकास की बहुत अधिक आवश्यकता है, जिसमें लोग अपने लिए रोज़गार विकसित कर सकें और दूसरों को भी रोज़गार दे सकें।

आज जो सबसे बड़ी कमी शिक्षा व्यवस्था की दिखाई देती है, वह यही है कि लोग डिग्री हासिल करते हैं और रोज़गार के लिए लाइन बढ़ती जाती है। असल में शिक्षा के अंतर्गत कुशलता और संस्कार दोनो मिलने चाहिएं। ऐसा कि शिक्षा लेने के बाद मनुष्य में कुशलता हो, संस्कार हो और कुछ कर गुज़रने का हौसला हो। जबकि हो यही रहा है कि लोग डिग्री लेकर रोज़गार के लिए लाइन में लग रहे हैं, रोज़गार के अवसर नहीं बढ़ रहे हैं और ये डिग्रीधारी लोग केवल दफ्तर की कुर्सी पर बैठकर काम करने के लिए ही तैयार होते हैं। बहुत सारे काम ऐसे हैं, जिनको करने के बारे में ये सोच भी नहीं पाते।

ये कैसे होगा, यह कहने की स्थिति में तो मैं नहीं हूँ, लेकिन इतना ही कहना चाहूंगा कि शिक्षा से छात्रों को आशावाद, संस्कार , नई पहल करने का उत्साह और कुशलता मिलने चाहिएं। विद्वानों को इस विषय में विचार करके शिक्षा का ढांचा सुधारना चाहिए और हाँ साथ ही साथ अगर रोज़गार के अतिरिक्त अवसर विकसित हों और उद्यमिता के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन भी दिया जाए, तो निश्चित रूप से तस्वीर बदल सकती है।

नमस्कार।’

IndiSpire #EducationSystem

• What’s the most necessary change our education system need ? what’s your view(s) in this issue?


4 responses to “253. शिक्षा में अशिक्षा!”

  1. बेशक़ सर
    आप के सुझाव बहुत अच्छे हैं

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    1. धन्यवाद जी।

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  2. बहुत अच्छे विचार हैं।

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    1. धन्यवाद रूपेंद्र जी।

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