जीवन में निरंतर सीखना!

जब हम लोगों से बात करते हैं, विशेष अधिक उम्र के लोगों से और उनकी किसी गलती या कमी की तरफ इशारा करते हाँ, अथवा कहते हैं कि ये काम शायद ठीक नहीं है, तब अक्सर हमें एक जवाब सुनने को मिल जाता है- ‘मैंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं’, अर्थात वे मानते हैं कि उस मामले में गलत नहीं हो सकते।

ऊपर दी गई प्रतिक्रिया का अर्थ यही है कि जब व्यक्ति की उम्र अधिक हो गई है तो इसका मतलब यह कि उसको अनुभव अधिक हो गया है, इसलिए उससे गलती होने की संभावना नहीं है, और बहुत से लोग तो यह सुनना ही पसंद नहीं करते कि कोई उनको उनकी गलती बताए।

उनका यह आत्मविश्वास अपनी जगह है और यह सच्चाई अपनी जगह है कि हमारे देश में, (बाहर भी होता होगा, लेकिन मैं तो अपने यहाँ की जानता हूँ, हाँ तो हमारे यहाँ बहुत से लोग ऐसे हैं जो उम्र बढ़ने के साथ-साथ पहले से ज्यादा मूर्ख होते जाते हैं।

इसका मुख्य कारण यही है समय बदलने के साथ-साथ अपने आपको, अपने सहज ज्ञान को मांजना, संवर्धित करना, नई परिस्थितियों के अनुरूप अपडेट करना, वेलिडेट करना जरूरी हो जाता है। और ऐसे में वे लोग जिनको परिवर्तन और विशेष अपने से छोटों के सुझाव मानने में दिक्कत होती है वे पिछड़े रह जाते हैं और कुछ मामलों में बहुत अव्यावहारिक हो जाते हैं।

इस बात में मैंने बुज़ुर्गों वाला एंगल ऐसे ही डाल दिया, कुछ मामलों में वह सही होता है, लेकिन सामान्यतः सभी लोगों में यह कमी अथवा सकारात्मक विशेषता हो सकती है।

जैसे एक व्यक्ति ऐसा हो सकता है जो अपने सामने आए परिणाम से भी नहीं सीखता और बार-बार उसी मुसीबत से लड़ता है, जबकि दूसरा व्यक्ति ऐसा हो सकता है, जो इस पहले व्यक्ति के सामने आए परिणाम से सीख लेकर अपना व्यवहार, अपनी नीति बदल सकता है और उस दुष्परिणाम को टाल देता है, जो इस पहले व्यक्ति को बार-बार भुगतना पड़ता है।

इससे जुड़ा एक उदाहरण मैंने अपनी पुरानी पोस्ट में भी दिया है, उसको ही दोहरा रहा हूँ। एक शराबी था, जिसने अपनी नशे की लत के कारण अपने परिवार को बर्बाद कर दिया, वह अपनी पत्नी को और बच्चों को भी नशा करके पीटता था, अंत में वह नशे के कारण असमय मृत्यु का शिकार हो गया।
उस शराबी के दो बेटे थे, एक बेटा उसकी ही तरह शराबी बना, उसने परिस्थितियों से कुछ नहीं सीखा बल्कि नकल भर की। वह बोला मेरा बाप शराबी था, मैं और क्या बन सकता था!

दूसरे बेटे ने अपने घर की परिश्तितियों को देखकर यह फैसला कर लिया था कि कुछ भी हो जाए, वह शराबी नहीं बनेगा और वह जीवन में बहुत सफल हुआ।

दोनो बेटों के सामने वही परिस्थितियां थीं। लेकिन उनमें से एक ‘स्मार्ट लर्नर’ था, जिसने घर की परिस्थितियों से, अपने पिता की नियति से सीख ली जबकि दूसरा अपने पिता की तरह, वही ठोकरें फिर से खाने को तैयार था।

कुछ ऐसे भी संस्थान होते हैं जहाँ कहते हैं- ‘अर्न व्हाइल यू लर्न’, जीवन भी एक ऐसा ही संस्थान है, यज्ञशाला भी है और पाठशाला भी! यहाँ हम अपनी भूमिका भी निभाते हैं, कर्म का यज्ञ भी करते हैं, वहीं हमारे सामने यह भी अवसर होता है कि हम अपनी परिस्थितियों, आसपास होने वाली घटनाओं, सभी से सीख ले सकते हैं, निरंतर शिक्षित हो सकते हैं और जीवन के युद्ध को और अधिक महारत के लिए लड़ने के लिए तैयार भी हो सकते हैं।

• आज का मेरा यह आलेख #IndiSpire के अंतर्गत दिए गए विषय Are you a smart learner? Do you learn lessons from everyday things? How did you learn the lessons? पर आधारित है।

आज के लिए इतना ही, नमस्कार ।
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2 responses to “जीवन में निरंतर सीखना!”

  1. बहुत ज़रूरी विषय चर्चा के लिए !

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  2. धन्यवाद नीरज जी।

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