131. जवां रहो!

आज फिर से प्रस्तुत है एक पुरानी ब्लॉग पोस्ट-

अब जब पुरानी कविताएं शेयर करने का सिलसिला चल निकला है तो लीजिए, मेरी एक और पुरानी कविता प्रस्तुत है-

सपनों के झूले में
झूलने का नाम है- बचपन,
तब तक-जब तक कि
इन सपनों की पैमाइश
जमीन के टुकड़ों,
इमारत की लागत
और बैंक खाते की सेहत से न आंकी जाए।

जवान होने का मतलब है
दोस्तों के बीच होना
ठहाकों की तपिश से
माहौल को गरमाना,
और भविष्य के प्रति
अक्सर लापरवाह होना।

बूढ़ा होने का मतलब है-
अकेले होना,
जब तक कोई, दोस्तों की
चहकती-चिलकती धूप में है,
तब तक वह बूढ़ा कैसे हो सकता है।

                                           (श्रीकृष्ण शर्मा)  

नमस्कार।
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4 responses to “131. जवां रहो!”

  1. To feel young has nothing to do with age…. 🙂

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  2. A strong message from ur words sir !!
    Enjoyed reading

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    1. Thanks for appreciating.

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