135. गीतों में कहनी थीं तुमसे कुछ बातें!

आज फिर से प्रस्तुत है एक पुरानी ब्लॉग पोस्ट-

चलिए अब फिर से, जो काम बीच में छोड़ दिया था अपनी अधबुनी, अधखुली कवित्ताओं को शेयर करने का, वो काम फिर से शुरू करता हूँ। आज की कविता गीत के रूप में है-

गीतों में कहनी थीं, तुमसे कुछ बातें
आओ कुछ समय यहीं साथ-साथ काटें।

अपनी तुतली ज़ुबान गीतमयी
मुद्दत से बंद चल रही,
करवट लेते विचार हर पल लेकिन,
वाणी खामोश ही रही।
आंदोलित करें आज, भीतर की हलचल को,
चुन लें अभिव्यक्ति के, फूल और कांटे।
आओ कुछ समय यहीं साथ-साथ काटें।।

जीवन सागर से, याचक बने समेटें
गीतों की शंख-सीपियां,
दूर करें मिलकर, तट को गंदा करतीं,
उथली, निर्मम कुरीतियां।
जन-गण के सपनों पर
अपनी टांगें पसार,
सोते संप्रभुओं की नींद कुछ उचाटें।

                                                           (श्रीकृष्ण शर्मा)

नमस्कार।
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4 responses to “135. गीतों में कहनी थीं तुमसे कुछ बातें!”

  1. Beautiful piece sir !!

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    1. Thanks a lot.

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