मौसम ये भारतीय चुनावों का!

बहुत दिनों से तत्कालीन परिवेश पर कोई आलेख नहीं लिखा है। जबकि आजकल दो स्पर्द्धाएं बड़े जोर-शोर से चल रही हैं। एक स्पर्धा में तो युवाओं की विशेष रुचि है, वह है- आईपीएल, जिसमें बहुत से देशों के खिलाड़ी भारत के किसी नगर, किसी क्षेत्र विशेष के नाम से जानी जाने वाली किसी एक टीम का हिस्सा हैं, और एक प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को दर्शाने वाली टीमें हैं, जिसमें कोई गलती होने पर भी अंपायर तुरंत सज़ा देते हैं और बहुत हंसी-खुशी के माहौल में ये स्पर्द्धाएं चल रही हैं और अब जल्दी ही इनका परिणाम आने वाला है।

दूसरी स्पर्द्धा जो है वह इससे से भी लंबी चलने वाली है, 23 मई को उसका परिणाम आएगा। आईपीएल में जहाँ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का प्रदर्शन होता है, वहीं चुनावों की यह प्रक्रिया हर नगर और मुहल्ले में और कहीं-कहीं घरों में भी विभाजन पैदा कर देती है। आईपीएल के जाने-माने खिलाड़ियों को जहाँ सभी लोग जानते हैं, वहीं कभी ऐसा भी होता है कि कोई कम प्रसिद्ध खिलाड़ी अपनी धाक जमा लेता है। चुनावों के इस खेल में भी ऐसा संभवसंभव है लेकिन इसके लिए बंदे को कोई विशेष किस्म की बद्तमीजी करनी पड़ती है। मेरा मन है कि कुछ छिटपुट बातें जो मेरे दिमाग में आ रही हैं इन चुनावों को लेकर, उनकी बात कर लेता हूँ।

अब जहाँ तक कप्तानों की बात है, मैदान में- मोदी जी, राहुल बाबा, माया मेम साब, अखिलेश भैया आदि-आदि अनेक जाने-माने खिलाड़ी हैं और यह मैच, विभिन्न इलाकों में एक तरफ से मोदी जी और दूसरी तरफ से अनेक महारथियों की टीमों के बीच हो रहा है, क्योंकि इन महारथियों को लगता है कि अकेले में तो वे बच नहीं पाएंगे, और हाँ वे इस अस्तित्व बचाने की लड़ाई को, देश बचाने की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

परिणाम तो जो भी जनता-जनार्दन ठीक समझेगी वह आएगा, मैं यहाँ कुछ खिलाड़ियों के विशेष प्रदर्शन पर ही टिप्पणी करना चाहूंगा।

एक खिलाड़ी हैं- शत्रु भैया। बीजेपी में इनको काफी महत्व दिया गया, वाजपेयी सरकार में ये मंत्री भी रहे। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद इन्हें मंत्रीपद नहीं दिया गया, तभी से इन्होंने मान लिया कि यह सरकार ठीक नहीं चलने वाली है। ऐसा ज्ञान इनके अलावा- यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी आदि-आदि कई विद्वानों को एक साथ मिला। खैर पूरे लगभग 5 साल तक बीजेपी इनके बागी तेवर झेलती रही और अंत में जब इनको चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं मिला तो ‘टिकट विंडो’ के सामने ही इन्होंने पार्टी बदल ली। और मजे की बात यह कि ज़नाब कांग्रेस में गए और उनकी धर्मपत्नी समाजवादी पार्टी में! अब कांग्रेस को भी इस महान कलाकार से वफादारी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, सो ये समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी अपनी पत्नी के लिए तो प्रचार करने गए ही, अपनी पार्टी के अध्यक्ष के स्थान पर अखिलेश यादव की तारीफ भी कर दी, प्रधानमंत्री पद के संदर्भ में।

एक महान खिलाड़ी है नवजोत सिद्धू जी, पार्टी बदलना तो एक बात है, ऐसा लगता है कि पहले जिन बातों, जिन सिद्धांतों में उनका विश्वास था, अब वह एकदम उलट गया है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के बारे में क्या कहूं। यहाँ राजशाही पूरी तरह आज भी लागू है। यद्यपि कई और पार्टियों में भी ऐसा है, लेकिन स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी पार्टी से तो यह उम्मीद नहीं की जाती। कांग्रेस और इसके अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में विचार करते हुए मुझे एक कहानी का संदर्भ याद आता है। कहानी में कुछ ऐसा था कि राजा की हजामत बनाने वाला व्यक्ति देखता है कि राजा के सिर पर सींग है। लेकिन वह किसी को बताये कैसे, बताएगा तो मारा जाएगा।

कांग्रेस में आज यही स्थिति है। वंशगत परंपरा के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पाने वाले राहुल गांधी से कोई यह नहीं कह सकता कि वे जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, वह बदतमीज़ी से भरी हुई है।

 

वैसे आजकल चल रहे इस मैच में बहुत से दिव्य खिलाड़ी हैं। ज़नाब आजम खान भी तो हैं, जो समाजवादी पार्टी को विशेष प्रकार की ख्याति दिला रहे हैं। इसी प्रकार भाजपा सहित सभी पार्टियों में अनेक ऐसे लोग हैं जो अपनी बद्ज़ुबानी से ही ख्याति प्राप्त करते हैं। देखिए उम्मीद करते हैं कि यह मैच ठीक से संपन्न हो जाएगा और जनता द्वारा चुनी गई सरकार जल्दी ही काम करना शुरू कर देगी।

आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।


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