दिन प्रतिदिन वह आता है – रवींद्रनाथ ठाकुर

आज मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘Day After Day He Comes’ का भावानुवाद-

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता

दिन प्रतिदिन वह आता है!

दिन प्रतिदिन वह आता है, और फिर चला जाता है
कहीं दूर। जाओ, उसे यह फूल दे दो, जो अभी मेरे बालों
में लगा है, मेरे मित्र।

अगर वह पूछे कि किसने भेजा है यह, तो
मेरी विनती है कि मेरा नाम न बताना उसे–
क्योंकि वह बस आता है, और वापस लौट जाता है।

वह बैठता है वृक्ष के तले धूल में,
वहाँ फूलों और पत्तियों को फैलाकर एक आसन
बनाता है, मेरे मित्र, और वापस लौट जाता है।

उसकी आंखें उदास होती हैं, और उनसे
मेरे हृदय में उदासी छा जाती है।

वह कुछ बताता नहीं है, कि क्या बात है
उसके मन में; बस वह आता है, और वापस लौट जाता है।

                                                                      -रवींद्रनाथ ठाकुर

 

और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-

 

Day After Day He Comes

 

Day after day he comes and goes
away.
Go, and give him a flower from my
hair, my friend.

If he asks who was it that sent it, I
entreat you do not tell him my name–
for he only comes and goes away.

He sits on the dust under the tree.
Spread there a seat with flowers and
leaves, my friend.
His eyes are sad, and they bring
sadness to my heart.

He does not speak what he has in
mind; he only comes and goes away.

-Rabindranath Tagore

नमस्कार।

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