68. हाय रे हाय ओ दुनिया, हम तेरी नज़र में आवारे!

आज फिर से पुरानी ब्लॉग पोस्ट का दिन है और प्रस्तुत है मेरी यह पुरानी पोस्ट-

एक फिल्मी गाना याद आ रहा है, फिल्म थी- ’मैं नशे में हूँ’, यह गीत राज कपूर जी पर फिल्माया गया है, शैलेंद्र जी ने लिखा है, शंकर जयकिशन का संगीत और आवाज़ है मेरे प्रिय गायक मुकेश जी की। बोल हैं-

हम हैं तो चांद और तारे
जहाँ के ये रंगी नज़ारे
हाय री हाय ओ दुनिया
हम तेरी नज़र में आवारे..

ये आवारगी भी अज़ीब चीज है, कहीं इसको पवित्र रूप भी दिया जाता है। यायावर कहते हैं, परिव्राजक कहते हैं, और भी बहुत से नाम हैं। जब हम एक रूटीन से बंधे होते हैं, तब हम चाहें तब भी आवारगी नहीं कर सकते। आवारगी में मुख्य भाव यही है कि कोई उद्देश्य इसमें नहीं होता, वैसे नकारात्मक अर्थों में ऐसी भी आवारगी होती है, जिसमें उद्देश्य गलत होता है, लेकिन उसके लिए कुछ दूसरे शब्द भी हैं, इसलिए उसको हम अपनी इस चर्चा में नहीं लाएंगे।

भंवरा जो फूलों पर मंडराता रहता है, वह भी प्रकृति की सुंदरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, परागण करके, फूलों की सुंदरता को फैलाने में सहायक होता है। मधुमक्खी की आवारगी तो जैसे हमारे मधु-उद्योग को ही चलाती है, लेकिन कहीं अगर उनके इस कार्य के दौरान, उनके हत्थे चढ़ गए तो खैर नहीं। इंसान तो खैर बहुत चालाक है, उनकी मेहनत से भी खूब वसूली करता है, और इस काम में बाबा रामदेव भी पीछे नहीं रहते।

खैर निरपेक्ष भाव से गीतों, गज़लों में आए ‘आवारगी’ के ज़िक्र पर चर्चा करते हैं, पवित्र आवारगी के बारे में-

जिस गीत का उल्लेख पहले किया, उसमें ही आगे पंक्तियां हैं-

जीवन के ये लंबे रस्ते, काटेंगे गाते-हंसते,
मिल जाएगी हमको मंज़िल, एक रोज़ तो चलते चलते,
अरमान जवां हैं हमारे, छूने को चले हैं सितारे,
हाय रे हाय ओ दुनिया—
एक जोश है अपने दिल में, घबराए नहीं मुश्किल में,
सीखा ही नहीं रुक जाना, बढ़ते ही चले महफिल में,
करते हैं गगन पे इशारे, बिजली पे कदम हैं हमारे,
हाय रे हाय ओ दुनिया—
राहों में कोई जो आए, वो धूल बने रह जाए,
ये मौज़ हमारे दिल की, न जाने कहाँ ले जाए,
हम प्यार के राजदुलारे, और हुस्न के दिल से सहारे,
हाय रे हाय ओ दुनिया, हम तेरी नज़र में आवारे।

एक और गीत है, जो भगवान दादा पर फिल्माया गया है-

हाल-ए-दिल हमारा, जाने न बेवफा ये ज़माना-ज़माना
सुनो दुनिया वालों, आएगा लौटकर दिन सुहाना-सुहाना।
एक दिन दुनिया बदलकर, रास्ते पर आएगी,
आज ठुकराती है हमको, कल मगर शर्माएगी,
बात ये तुम जान लो, अरे जान लो भैया।
दाग हैं दिल पर हज़ारों, हम तो फिर भी शाद हैं,
आस के दीपक जलाए देख लो आबाद हैं,
तीर दुनिया के सहे और खुश रहे भैया।

और फिर आवारगी की पवित्रता का संकल्प-

झूठ की मंज़िल पे यारों, हम न हर्गिज़ जायेंगे
हम ज़मीं की खाक सही पर, आसमां पर छाएंगे।
क्यूं भला दबकर रहें, डरते नहीं भैया।

आवारगी को प्रोमोट करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, मेरा यही मानना है कि जो कवि-कलाकार होते हैं, वे मन से आवारा होते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो लीक पर चलने वाले नहीं होते, अज्ञेय जी ने कहा, वे राहों के अंवेशी होते हैं। इस पवित्र आवारगी को प्रणाम करते हुए बता दूं कि इस विषय पर आगे भी बात करूंगा।

आखिर में गुलाम अली जी की गाई गज़ल का एक शेर-

एक तू कि सदियों से मेरे हमराह भी, हमराज़ भी,
एक मैं कि तेरे नाम से ना-आशना आवारगी।

नमस्कार।

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