कैसे नादान हैं, शोलों को हवा देते हैं!

आज एक बहुत पुरानी फिल्म और उसका एक गीत याद आ रहे हैं। आज का यह गीत है 1963 में रिलीज़ हुई फिल्म- ताज महल का, साहिर लुधियानवी जी के लिखे इस गीत को सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने रोशन जी के संगीत निर्देशन में अनूठे ढंग से गाया है।

कुल मिलाकर इतना है कि दुनिया में हुक़ूमतें हैं, सरमायेदारी है, पूरी दुनिया को जीत लेने का, सब कुछ अपने कब्ज़े में कर लेने का ज़ुनून है और दूसरी तरफ मुहब्बत है, जो अपना सब कुछ लुटा देने को तैयार है, सब तरह के ज़ुल्म हंसते-हंसते सह जाती है। तख्त और ताज की उसके लिए कोई अहमियत नहीं है। लीजिए मुहब्बत के इस अमर गीत का आनंद लेते हैं-

 

जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं, 
कैसे नादान हैं, शोलों को हवा देते हैं|
कैसे नादान हैं

 

हमसे दीवाने कहीं तर्क-ए- वफ़ा करते हैं, 
जान जाये कि रहे बात निभा देते हैं।
जान जाये…

 

आप दौलत के तराज़ू मैं दिलों को तौलें, 
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं।
हम मोहब्बत से…

 

तख़्त क्या चीज़ है और लाल-ओ-जवाहर क्या है, 
इश्क़ वाले तो खुदाई भी लुटा देते हैं।
इश्क़ वाले …

 

हमने दिल दे भी दिया, अहद-ए-वफ़ा ले भी लिया, 
आप अब शौक से दीजे जो सज़ा देते हैं।
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं।

 

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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