थोड़ी दूर साथ चलो!

आज ज़नाब अहमद फराज़ साहब की लिखी एक गज़ल याद आ रही है, जिसे गुलाम अली साहब ने बहुत सुंदर ढंग से गाया है। इस छोटी सी गज़ल में बहुत गहरी बात,अहमद फराज़ साहब ने बहुत सरल अंदाज़ में कह दी हैं, आइए इस गज़ल का आनंद लेते हैं-

 

कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो।
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो।

 

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है,
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो।

 

नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं,
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो।

 

ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है,
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो।

 

तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है
‘फ़राज़’ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।

 

अंतिम शेर में ‘तवाफ’ का अर्थ है ‘चक्कर लगाना/घूमकर आना’, बाकी सब तो स्पष्ट ही है।

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार।

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