मेरे सपनों से मगर!

अभी कहीं यह उल्लेख हुआ था कि ‘राइटर्स ब्लॉक’ को तोड़ने के लिए, मतलब कि अगर आप कुछ नया नहीं लिख पा रहे हों, तो आपको अपने कोई स्वप्न याद करने चाहिएं और उनको लिख डालना चाहिए, अब यह फैसला आप बाद में कर सकते हैं कि उसको शेयर करना है या नहीं, हाँ इससे आपका लिखने का ‘मोमेंटम’ फिर से बन जाएगा। यह किसी बड़े लेखक का अपनाया हुआ फार्मूला था।

 

मुझे ऐसे ही खयाल आ रहा कि स्वप्नों के बारे में बात की जाए, जो स्वप्न नींद में आते हैं वो तो मुझे याद नहीं रहते। वैसे भी अब्दुल क़लाम साहब ने कहा कि असली स्वप्न वो नहीं होते जो नींद में आते हैं बल्कि वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते। उन्होंने यह भी कहा है कि ‘छोटे सपने देखना अपराध है’।

फिल्म नगरी में मेरे उस्ताद- स्व. राज कपूर जी तो ‘सपनों का सौदागर’ कहलाते थे।

उनके द्वारा अभिनीत इसी नाम वाली एक फिल्म का गीत भी है-

सपनों का सौदागर आया, ले लो ये सपने ले लो,
तुमसे किस्मत खेल चुकी, अब तुम किस्मत से खेलो।
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ये रंग-बिरंगे सपने, ये जीवन के उजियारे,
ये तनहाई के साथी, ये भीड़ में संग-सहारे,
ये ढलती रात के सूरज, ये जगती आंख के तारे।
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जैसा मुझे याद है लिख दिया, इस तरह की बहुत सारी खूबियां सपनों की इस गीत में बताई गई हैं।

एक शेर याद आ रहा है दुष्यंत कुमार जी के गज़ल संकलन ‘साये में धूप’ से जो उन्होंने आपात्काल में लिखा था, जब एक प्रकार से सपने देखना भी अपराध हो गया था। यह शेर है-

लेकर फिरे है ज़ेहन में जाने कहाँ के ख्वाब,
इस सिरफिरे की जामा-तलाशी तो लीजिए।

जितने लोग अपने समय से आगे सोचने वाले रहे हैं, वे अपनी-अपनी तरह से आगे के बारे में सोचते रहे हैं, स्वप्न देखते रहे हैं। वो प्लेटो हों या सुकरात हों, स्वामी विवेकानंद हों या आधुनिक समय में गांधी जी ही क्यों न रहे हों। उनसे लोग चमत्कृत भले ही होते रहे हों, लेकिन लोगों ने उनका अनुसरण बहुत कम किया है।

वैसे फिल्मी गीतों की बात की जाए तो वहाँ सपनों को भी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया, बहुत सारी मिसाल मिल जाएंगी, मैं यहाँ एक ही दे रहा हूँ, ये देखिए-

हम आपको ख्वाबों में आ-आ के सताएंगे।

और जवाब है-

हम आपकी आंखों से नींदें ही उड़ा दें तो!

सपनों के बारे में बातें बहुत हो सकती हैं, मूड होगा तो आगे करूंगा, आज अंत में डॉ. कुंवर बेचैन जी की पंक्तियां दोहरा देता हूँ-

विरहिन की मांग सितारे नहीं संजो सकते,
प्रेम के सूत्र नज़ारे नहीं पिरो सकते,
मेरी कुटिया से माना कि महल ऊंचे हैं,
मेरे सपनों से मगर ऊंचे नहीं हो सकते।

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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