ऐसा है स्वभाव प्रेम का- रवींद्रनाथ ठाकुर

आज, मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘On The Nature Of Love’ का भावानुवाद-

 

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता

 

 

ऐसा है स्वभाव प्रेम का!   

 

अंधियारी रात है और जंगल का कोई अंत नहीं है;
लाखों लोग यहाँ विचरते हैं, लाखों तरीकों से,
हमको इस अंधकार में अपनी निर्धारित गुप्त मुलाक़ात करनी हैं, परंतु कहाँ
और किसके साथ- इसकी हमको जानकारी नहीं है।
परंतु यह आस्था है हमारी – कि हमारे जीवन काल का यह परमानंद
किसी भी क्षण, अपने होठों पर मुस्कान लिए, अवतरित हो सकता है।
अनेक गंध, स्पर्श, ध्वनियां, गीतों की कड़ियां,  
हमको सहलाते हुए निकट से गुजरती हैं, हमें सुखद झटके देती हैं।
तभी अकस्मात बिजली सी कौंधती है:
उस क्षण मैं जिसको भी देखता हूँ, उससे मुझे प्रेम हो जाता है।
मैं उस व्यक्ति को पुकारता हूँ और चिल्लाता हूँ: जीवन सौभाग्यपूर्ण है!
तुम्हारे लिए ही मैं मीलों चलकर आया हूँ!
अन्य सभी, जो पास आए और फिर दूर चले गए,   
अंधकार में- मुझे नहीं मालूम कि वे अस्तित्व में हैं भी या नहीं।

 

-रवींद्रनाथ ठाकुर

 

और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-

 

On The Nature Of Love

 

The night is black and the forest has no end;
a million people thread it in a million ways.
We have trysts to keep in the darkness, but where
or with whom – of that we are unaware.
But we have this faith – that a lifetime’s bliss
will appear any minute, with a smile upon its lips.
Scents, touches, sounds, snatches of songs
brush us, pass us, give us delightful shocks.
Then peradventure there’s a flash of lightning:
whomever I see that instant I fall in love with.
I call that person and cry: `This life is blest!
for your sake such miles have I traversed!’
All those others who came close and moved off
in the darkness – I don’t know if they exist or not.

 

Rabindranath Tagore

 

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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