आखिरी सौदा- रवींद्रनाथ ठाकुर

आज, मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘The Last Bargain’ का भावानुवाद-

 

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता

आखिरी सौदा

 

 

 

“आओ मुझे काम पर रख लो,” मैं चिल्लाया, जब सुबह मैं पथरीले मार्ग पर चल रहा था।
हाथों में तलवार लिए, राजा वहाँ आया अपने रथ पर सवार।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “मैं अपनी शक्ति के आधार पर तुम्हें काम पर रखूंगा।”
लेकिन उसकी शक्ति शून्य मात्र निकली, और वह अपने रथ में वापस चला गया।

 

दोपहर की गर्मी भरी धूप में, सभी घरों के दरवाजे बंद थे।
मैं घुमावदार गलियों में घूमता रहा।
एक बूढ़ा आदमी अपने सोने से भरी थैली के साथ आया।
उसने विचार करके कहा, “मैं अपने धन से तुम्हे काम पर रखूंगा।”
उसने एक-एक करके अपने सिक्कों को गिना, लेकिन फिर वापस घूम गया।

 

शाम का समय था। बगीचे की बाड़ फूलों से लदी थी।
एक सुंदर लड़की बाहर आई और बोली, “मैं तुम्हे एक मुस्कान के बल पर सेवक बना लूंगी।”
उसकी मुस्कान फीकी पड़ी और आंसुओं में बह गई, फिर वह अंधेरे में वापस लौट गई।

 

सूर्य की किरणें कुछ देर तक रेत पर चमकीं, और समुद्र की लहरें सीमा पार कर रास्ते की तरफ बढ़ गईं।
एक बच्चा बैठा शंख-सीपियों से खेल रहा था।
उसने सिर उठाया, लगा कि वह मुझे जानता है, वह बोला, “मैं बिना कुछ दिए, तुम्हे सेवक बनाता हूँ।“
उस समय  से ही, बच्चे के खेल में हुआ सौदा लागू हो गया  और मैं एक मुक्त मनुष्य बन गया।

 

-रवींद्रनाथ ठाकुर

 

और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-

 

 

The Last Bargain

 

“Come and hire me,” I cried, while in the morning I was walking on the stone-paved road.
Sword in hand, the King came in his chariot.
He held my hand and said, “I will hire you with my power.”
But his power counted for nought, and he went away in his chariot.

 

In the heat of the midday the houses stood with shut doors.
I wandered along the crooked lane.
An old man came out with his bag of gold.
He pondered and said, “I will hire you with my money.”
He weighed his coins one by one, but I turned away.

 

It was evening. The garden hedge was all aflower.
The fair maid came out and said, “I will hire you with a smile.”
Her smile paled and melted into tears, and she went back alone into the dark.

 

The sun glistened on the sand, and the sea waves broke waywardly.
A child sat playing with shells.
He raised his head and seemed to know me, and said, “I hire you with nothing.”
From thenceforward that bargain struck in child’s play made me a free man.

 

Rabindranath Tagore

 

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

************

One response to “आखिरी सौदा- रवींद्रनाथ ठाकुर”

  1. Beautiful poetry. Thank you Shri Krishnaji for sharing this.

    Like

Leave a comment